पूजा के नियम

पूजा तो सब करते हैं परन्तु यदि इन नियमों को ध्यान में रखा जाये तो उसी पूजा पथ का हम अत्यधिक फल प्राप्त कर सकते हैं.वे नियम कुछ इस प्रकार हैं.

  1. सूर्य, गणेश,दुर्गा,शिव एवं विष्णु ये पांच देव कहलाते हैं. इनकी पूजा सभी कार्यों में गृहस्थ आश्रम में नित्य होनी चाहिए. इससे धन,लक्ष्मी और सुख प्राप्त होता है.
  2. गणेश जी और भैरवजी को तुलसी नहीं चढ़ानी चाहिए.
  3. दुर्गा जी को दूर्वा नहीं चढ़ानी चाहिए.
  4. सूर्य देव को शंख के जल से अर्घ्य नहीं देना चाहिए.
  5. तुलसी का पत्ता बिना स्नान किये नहीं तोडना चाहिए. जो लोग बिना स्नान किये तोड़ते हैं,उनके तुलसी पत्रों को भगवान स्वीकार नहीं करते हैं.
  6. रविवार,एकादशी,द्वादशी ,संक्रान्ति तथा संध्या काल में तुलसी नहीं तोड़नी चाहिए
  7. दूर्वा( एक प्रकार की घास) रविवार को नहीं तोड़नी चाहिए.
  8. केतकी का फूल शंकर जी को नहीं चढ़ाना चाहिए.
  9. कमल का फूल पाँच रात्रि तक उसमें जल छिड़क कर चढ़ा सकते हैं.
  10. बिल्व पत्र दस रात्रि तक जल छिड़क कर चढ़ा सकते हैं.
  11. तुलसी की पत्ती को ग्यारह रात्रि तक जल छिड़क कर चढ़ा सकते हैं.
  12. हाथों में रख कर हाथों से फूल नहीं चढ़ाना चाहिए.
  13. तांबे के पात्र में चंदन नहीं रखना चाहिए.
  14. दीपक से दीपक नहीं जलाना चाहिए जो दीपक से दीपक जलते हैं वो रोगी होते हैं.
  15. पतला चंदन देवताओं को नहीं चढ़ाना चाहिए.
  16. प्रतिदिन की पूजा में मनोकामना की सफलता के लिए दक्षिणा अवश्य चढ़ानी चाहिए. दक्षिणा में अपने दोष,दुर्गुणों को छोड़ने का संकल्प लें, अवश्य सफलता मिलेगी और मनोकामना पूर्ण होगी.
  17. चर्मपात्र या प्लास्टिक पात्र में गंगाजल नहीं रखना चाहिए.
  18. स्त्रियों और शूद्रों को शंख नहीं बजाना चाहिए यदि वे बजाते हैं तो लक्ष्मी वहां से चली जाती है.
  19. देवी देवताओं का पूजन दिन में पांच बार करना चाहिए. सुबह 5 से 6 बजे तक ब्रह्म बेला में प्रथम पूजन और आरती होनी चाहिए. प्रात:9 से 10 बजे तक दिवितीय पूजन और आरती होनी चाहिए,मध्याह्र में तीसरा पूजन और आरती,फिर शयन करा देना चाहिए शाम को चार से पांच बजे तक चौथा पूजन और आरती होना चाहिए,रात्रि में 8 से 9 बजे तक पाँचवाँ पूजन और आरती,फिर शयन करा देना चाहिए.
  20. आरती करने वालों को प्रथम चरणों की चार बार,नाभि की दो बार और मुख की एक या तीन बार और समस्त अंगों की सात बार आरती करनी चाहिए
  21. पूजा हमेशा पूर्व या उतर की ओर मुँह करके करनी चाहिए, हो सके तो सुबह 6 से 8 बजे के बीच में करें
  22. पूजा जमीन पर ऊनी आसन पर बैठकर ही करनी चाहिए, पूजागृह में सुबह एवं शाम को दीपक,एक घी का और एक तेल का रखें.
  23. पूजा अर्चना होने के बाद उसी जगह पर खड़े होकर 3 परिक्रमाएँ करें.
  24. पूजाघर में मूर्तियाँ 1 ,3 , 5 , 7 , 9 ,11 इंच तक की होनी चाहिए, इससे बड़ी नहीं तथा खड़े हुए गणेश जी,सरस्वतीजी ,लक्ष्मीजी, की मूर्तियाँ घर में नहीं होनी चाहिए.
  25. गणेश या देवी की प्रतिमा तीन तीन, शिवलिंग दो,शालिग्राम दो,सूर्य प्रतिमा दो,गोमती चक्र दो की संख्या में कदापि न रखें.अपने मंदिर में सिर्फ प्रतिष्ठित मूर्ति ही रखें उपहार,काँच, लकड़ी एवं फायबर की मूर्तियां न रखें एवं खण्डित, जलीकटी फोटो और टूटा काँच तुरंत हटा दें, यह अमंगलकारक है एवं इनसे विपतियों का आगमन होता है.
  26. मंदिर के ऊपर भगवान के वस्त्र, पुस्तकें एवं आभूषण आदि भी न रखें मंदिर में पर्दा अति आवश्यक है अपने पूज्य माता –पिता तथा पित्रों का फोटो मंदिर में कदापि न रखें,उन्हें घर के नैऋत्य कोण में स्थापित करें .
  27. विष्णु की चार, गणेश की तीन,सूर्य की सात, दुर्गा की एक एवं शिव की आधी परिक्रमा कर सकते हैं
  28. प्रत्येक व्यक्ति को अपने घर में कलश स्थापित करना चाहिए कलश जल से पूर्ण, श्रीफल से युक्त विधिपूर्वक स्थापित करें यदि आपके घर में श्रीफल कलश उग जाता है तो वहाँ सुख एवं समृद्धि के साथ स्वयं लक्ष्मी जी नारायण के साथ निवास करती हैं तुलसी का पूजन भी आवश्यक है
  29. मकड़ी के जाले एवं दीमक से घर को सर्वदा बचावें अन्यथा घर में भयंकर हानि हो सकती है
  30. घर में झाड़ू कभी खड़ा कर के न रखें झाड़ू लांघना, पाँवसे कुचलना भी दरिद्रता को निमंत्रण देना है दो झाड़ू को भी एक ही स्थान में न रखें इससे शत्रु बढ़ते हैं
  31. घर में किसी परिस्थिति में जूठे बर्तन न रखें. क्योंकि शास्त्र कहते हैं कि रात में लक्ष्मीजी घर का निरीक्षण करती हैं यदि जूठे बर्तन रखने ही हो तो किसी बड़े बर्तन में उन बर्तनों को रख कर उनमें पानी भर दें और ऊपर से ढक दें तो दोष निवारण हो जायेगा
  32. कपूर का एक छोटा सा टुकड़ा घर में नित्य अवश्य जलाना चाहिए,जिससे वातावरण अधिकाधिक शुद्ध हो: वातावरण में धनात्मक ऊर्जा बढ़े.
  33. घर में नित्य घी का दीपक जलावें और सुखी रहें
  34. घर में नित्य गोमूत्र युक्त जल से पोंछा लगाने से घर में वास्तुदोष समाप्त होते हैं तथा दुरात्माएँ हावी नहीं होती हैं
  35. सेंधा नमक घर में रखने से सुख श्री(लक्ष्मी) की वृद्धि होती है
  36. रोज पीपल वृक्ष के स्पर्श से शरीर में रोग प्रतिरोधकता में वृद्धि होती है
  37. साबुत धनिया,हल्दी की पांच गांठें,11 कमलगट्टे तथा साबुत नमक एक थैली में रख कर तिजोरी में रखने से बरकत होती है श्री (लक्ष्मी) व समृद्धि बढ़ती है.
  38. दक्षिणावर्त शंख जिस घर में होता है,उसमे साक्षात लक्ष्मी एवं शांति का वास होता है वहाँ मंगल ही मंगल होते हैं पूजा स्थान पर दो शंख नहीं होने चाहिएँ.
  39. घर में यदा कदा केसर के छींटे देते रहने से वहां धनात्मक ऊर्जा में वृद्धि होती है पतला घोल बनाकर आम्र पत्र अथवा पान के पते की सहायता से केसर के छींटे लगाने चाहिएँ.
  40. एक मोती शंख,पाँच गोमती चक्र, तीन हकीक पत्थर,एक ताम्र सिक्का व थोड़ी सी नागकेसर एक थैली में भरकर घर में रखें श्री (लक्ष्मी) की वृद्धि होगी.
  41. आचमन करके जूठे हाथ सिर के पृष्ठ भाग में कदापि न पोंछें,इस भाग में अत्यंत महत्वपूर्ण कोशिकाएँ होती हैं.
  42. घर में पूजा पाठ व मांगलिक पर्व में सिर पर टोपी व पगड़ी पहननी चाहिए,रुमाल विशेष कर सफेद रुमाल शुभ नहीं माना जाता है

क्या ट्यूब वेल के पानी को मीठा किया जा सकता हे ?

रैन वॉटर हार्वेस्टिंग वर्षा जल संग्रहण एवं उसके उचित निस्तारण की प्राचीन परंपरा है | बारिस के पानी को संग्रहित कर उसे ट्यूबवेल मे उतार देवे | समय के साथ ट्यूबवेल का जल मीठा हो जाएगा |

ब्रहतसंहिता मे वराहमिहिर के अनुसार अंजन मोथा, खस-खस, राजकोशतक, आँवला तथा कतक का फल  एक एक सेर मिलाकर ट्यूब वेल के पानी मे डाले, पानी  मीठा हो जाएगा |

वास्तु में ट्यूब वेल का स्थान कहाँ होना चाहिए?

ट्यूब वेल के लिए ईशान, पूर्व और उत्तर क्रमानुसार शुभ हें.|

सर्वप्रथम भूमि की ईशान से नेरेत्र्य को एक सरल रेखा खिचे. इसके पश्चात ईशान के दो भाग हो जाते हे प्रथम पूर्व ईशान और दूसरा उत्तर ईशान.|
ट्यूब वेल के लिए प्राथमिकता  पूर्व ईशान को देवे. भूमि को 9 बराबर भागो मे पूर्व और उत्तर दोनो तरफ से विभजीत किया जाय| इसके बाद पूर्व ईशान की तरफ से 3 भाग और उत्‍तर ईशान की तरफ से 3 भाग को चुने फिर इन तीन तीन भागो के द्वितीय भाग को चुना जाय.| जहा ये दोनो मिलते हो उस स्थान को चुने. अब उस स्थान को चुने जो इस सरल रेखा की पास हो पर ट्यूब वेल का बाहरी भाग इसे रेखा को न छुए|

नीचे चित्र से यह स्पष्ट होता हे प्राथमिकता पीले रंग को फिर हरे रंग के स्थान को देवे

घर मे टॉयलेट कहाँ होना चाहिए और उसका मुँह किस और होना चाहिए ?

  • वास्तु मे टॉयलेट को उत्तर-पश्चिम, दक्षिण-पश्चिम, दक्षिण-पूर्व मे होना चाहिए |
  • टॉयलेट की दीवार और किचन की दीवार एक नही होनी चाहिए |
  • टॉयलेट करते समय मुँह उत्तर या दक्षिण मे होना चाहिए

रंगो का वास्तु मे क्या उपयोग या महत्व हे?

रंग नीरस जीवन मे उल्लास भर देते हे | इनका बुध्दिमततापूर्वक उपयोग जीवन मे चहुँ और से प्रगती दिलाते हे| रंगो का ज़्यादा से ज़्यादा प्रयोग करे और रंगो का आनन्द लेवे |

रंगो के प्रयोग मे ध्यान देने योग्य महत्वपूर्ण बाते इस प्रकार हे

  • छोटे कमरे मे हल्के रंग करे |
  • ब्रडे कमरे मे गहरे रंग करे|
  • एक ही रंग के विभिन्न शेड व टिंट का प्रयोग सबसे आसान व सुरक्षित हे |
  • गर्म स्थान व दक्सिन और पश्चिम के कमरो मे कूल कलर्स का प्रोयोग करे |
  • कूल स्थान व उत्तर और पूर्व के कमरो मे वार्म कलर्स, गर्म रंगो को प्रयोग करे |
  • सफेद या क्रीम कॅलर सभी स्थानो पर सुगमता से प्रयोग किए जा सकते हे |
  • कमरे मे अतिरिक्त निखार देने के लिए जगह विशेष सोख , कटक चमकीले रंग का प्रयोग करे |
  • अंधेरे कमरो मे छत पर सफेद रंग व दीवारो पर हल्का रंग करे |
  • उँची छत पर घेरा रंग करने से छत नीची प्रतीत होती हे |
  • छत दीवार प्रकाश के परावर्तन के लिए छत पर हल्का रंग करे
  • रसोएघर मे हल्के रंगो का प्रयोग करे |
  • ड्राइंगरूम मे सब को पसंद आने वाले रंग करे |
  • बेडरूम मे शीतलता प्रदान करने वाले रंग करे |
  • बचो के कमरो मे सोख चटक रंगो का प्रयोग करे | सावधानी इस बात की रखे की ज़्यादा तड़क भड्के कमरे मे न हो और कमरा खुला खुला हो |
  • स्ननगर मे गर्म या कूल किसी भी रंगो का प्रयोग किया जा सकता हे

सपने तथा उनसे प्राप्त होने वाले संभावित फल

  1. सांप दिखाई देना – धन लाभ
  2. नदी देखना – सौभाग्य में वृद्धि
  3. नाच-गाना देखना – अशुभ समाचार मिलने के योग
  4. नीलगाय देखना – भौतिक सुखों की प्राप्ति
  5. नेवला देखना – शत्रुभय से मुक्ति
  6. पगड़ी देखना – मान-सम्मान में वृद्धि
  7. पूजा होते हुए देखना – किसी योजना का लाभ मिलना
  8. फकीर को देखना – अत्यधिक शुभ फल
  9. गाय का बछड़ा देखना – कोई अच्छी घटना होना
  10. वसंत ऋतु देखना – सौभाग्य में वृद्धि
  11. स्वयं की बहन को देखना – परिजनों में प्रेम बढऩा
  12. बिल्वपत्र देखना – धन-धान्य में वृद्धि
  13. भाई को देखना – नए मित्र बनना
  14. भीख मांगना – धन हानि होना
  15. शहद देखना – जीवन में अनुकूलता
  16. स्वयं की मृत्यु देखना – भयंकर रोग से मुक्ति
  17. रुद्राक्ष देखना – शुभ समाचार मिलना
  18. पैसा दिखाई देना – धन लाभ
  19. स्वर्ग देखना – भौतिक सुखों में वृद्धि
  20. पत्नी को देखना – दांपत्य में प्रेम बढ़ना
  21. स्वस्तिक दिखाई देना – धन लाभ होना
  22. हथकड़ी दिखाई देना – भविष्य में भारी संकट
  23. मां सरस्वती के दर्शन – बुद्धि में वृद्धि
  24. कबूतर दिखाई देना – रोग से छुटकारा
  25. कोयल देखना – उत्तम स्वास्थ्य की प्राप्ति
  26. जगर दिखाई देना – व्यापार में हानि
  27. कौआ दिखाई देना – बुरी सूचना मिलना
  28. छिपकली दिखाई देना – घर में चोरी होना
  29. चिडिय़ा दिखाई देना – नौकरी में पदोन्नति
  30. तोता दिखाई देना – सौभाग्य में वृद्धि
  31. भोजन की थाली देखना – धनहानि के योग
  32. इलाइची देखना – मान-सम्मान की प्राप्ति
  33. खाली थाली देखना – धन प्राप्ति के योग
  34. गुड़ खाते हुए देखना – अच्छा समय आने के संकेत
  35. शेर दिखाई देना – शत्रुओं पर विजय
  36. हाथी दिखाई देना – ऐेश्वर्य की प्राप्ति
  37. कन्या को घर में आते देखना – मां लक्ष्मी की कृपा मिलना
  38. सफेद बिल्ली देखना – धन की हानि
  39. दूध देती भैंस देखना – उत्तम अन्न लाभ के योग
  40. चोंच वाला पक्षी देखना – व्यवसाय में लाभ
  41. स्वयं को दिवालिया घोषित करना – व्यवसाय चौपट होना
  42. चिडिय़ा को रोते देखता – धन-संपत्ति नष्ट होना
  43. चावल देखना – किसी से शत्रुता समाप्त होना
  44. चांदी देखना – धन लाभ होना
  45. दलदल देखना – चिंताएं बढऩा
  46. कैंची देखना – घर में कलह होना
  47. सुपारी देखना – रोग से मुक्ति
  48. लाठी देखना – यश बढऩा
  49. खाली बैलगाड़ी देखना – नुकसान होना
  50. खेत में पके गेहूं देखना – धन लाभ होना
  51. किसी रिश्तेदार को देखना – उत्तम समय की शुरुआत
  52. तारामंडल देखना – सौभाग्य की वृद्धि
  53. ताश देखना – समस्या में वृद्धि
  54. तीर दिखाई – देना लक्ष्य की ओर बढऩा
  55. सूखी घास देखना – जीवन में समस्या
  56. भगवान शिव को देखना – विपत्तियों का नाश
  57. त्रिशूल देखना – शत्रुओं से मुक्ति
  58. दंपत्ति को देखना – दांपत्य जीवन में अनुकूलता
  59. शत्रु देखना – उत्तम धनलाभ
  60. दूध देखना-  आर्थिक उन्नति
  61. धनवान व्यक्ति देखना – धन प्राप्ति के योग
  62. दियासलाई जलाना – धन की प्राप्ति
  63. सूखा जंगल देखना – परेशानी होना
  64. मुर्दा देखना – बीमारी दूर होना
  65. आभूषण देखना – कोई कार्य पूर्ण होना
  66. जामुन खाना – कोई समस्या दूर होन
  67. जुआ खेलना – व्यापार में लाभ
  68. धन उधार देना – अत्यधिक धन की प्राप्ति
  69. चंद्रमा देखना – सम्मान मिलना
  70. चील देखना – शत्रुओं से हानि
  71. फल-फूल खाना – धन लाभ होना
  72. सोना मिलना – धन हानि होना
  73. शरीर का कोई अंग कटा हुआ देखना – किसी परिजन की मृत्यु के योग
  74. कौआ देखना – किसी की मृत्यु का समाचार मिलना
  75. धुआं देखना – व्यापार में हानि
  76. चश्मा लगाना – ज्ञान में बढ़ोत्तरी
  77. भूकंप देखना – संतान को कष्ट
  78. रोटी खाना – धन लाभ और राजयोग
  79. पेड़ से गिरता हुआ देखना किसी रोग से मृत्यु होना
  80. श्मशान में शराब पीना – शीघ्र मृत्यु होना
  81. रुई देखना – निरोग होने के योग
  82. कुत्ता देखना – पुराने मित्र से मिलन
  83. सफेद फूल देखना – किसी समस्या से छुटकारा
  84. उल्लू देखना – धन हानि होना
  85. सफेद सांप काटना – धन प्राप्ति
  86. लाल फूल देखना – भाग्य चमकना
  87. नदी का पानी पीना – सरकार से लाभ
  88. धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाना – यश में वृद्धि व पदोन्नति
  89. कोयला देखना – व्यर्थ विवाद में फंसना
  90. जमीन पर बिस्तर लगाना – दीर्घायु और सुख में वृद्धि
  91. घर बनाना – प्रसिद्धि मिलना
  92. घोड़ा देखना – संकट दूर होना
  93. घास का मैदान देखना- धन लाभ के योग
  94. दीवार में कील ठोकना – किसी बुजुर्ग व्यक्ति से लाभ
  95. दीवार देखना – सम्मान बढऩा
  96. बाजार देखना- दरिद्रता दूर होना
  97. मृत व्यक्ति को पुकारना – विपत्ति एवं दुख मिलना
  98. मृत व्यक्ति से बात करना – मनचाही इच्छा पूरी होना
  99. मोती देखना- पुत्री प्राप्ति
  100. लोमड़ी देखना – किसी घनिष्ट व्यक्ति से धोखा मिलना
  101. गुरु दिखाई देना – सफलता मिलना
  102. गोबर देखना – पशुओं के व्यापार में लाभ
  103. देवी के दर्शन करना – रोग से मुक्ति
  104. चाबुक दिखाई देना – झगड़ा होना
  105. चुनरी दिखाई देना- सौभाग्य की प्राप्ति
  106. छुरी दिखना – संकट से मुक्ति
  107. बालक दिखाई देना – संतान की वृद्धि
  108. बाढ़ देखना – व्यापार में हानि
  109. जाल देखना – मुकद्में में हानि
  110. जेब काटना – व्यापार में घाटा
  111. चेक लिखकर देना – विरासत में धन मिलना
  112. कुएं में पानी देखना- धन लाभ
  113. आकाश देखना- पुत्र प्राप्ति
  114. अस्त्र-शस्त्र देखना- मुकद्में में हार
  115. इंद्रधनुष देखना- उत्तम स्वास्थ्य
  116. कब्रिस्तान देखना- समाज में प्रतिष्ठा
  117. कमल का फूल देखना- रोग से छुटकारा
  118. सुंदर स्त्री देखना- प्रेम में सफलता
  119. चूड़ी देखना- सौभाग्य में वृद्धि
  120. कुआं देखना- सम्मान बढऩा
  121. अनार देखना – धन प्राप्ति के योग
  122. गड़ा धन दिखाना- अचानक धन लाभ
  123. सूखा अन्न खाना- परेशानी बढऩा
  124. अर्थी देखना- बीमारी से छुटकारा
  125. झरना देखना- दु:खों का अंत होना
  126. बिजली गिरना- संकट में फंसना
  127. चादर देखना- बदनामी के योग
  128. जलता हुआ दीया देखना – आयु में वृद्धि
  129. धूप देखना – पदोन्नति और धनलाभ
  130. रत्न देखना – व्यय एवं दु:ख
  131. चंदन देखना – शुभ समाचार मिलना
  132. जटाधारी साधु देखना – अच्छे समय की शुरुआत
  133. स्वयं की मां को देखना- सम्मान की प्राप्ति
  134. फूलमाला दिखाई देना – निंदा होना
  135. जुगनू देखना – बुरे समय की शुरुआत
  136. टिड्डी दल देखना – व्यापार में हानि
  137. डाकघर देखना – व्यापार में उन्नति
  138. डॉक्टर को देखना – स्वास्थ्य संबंधी समस्या
  139. ढोल दिखाई देना – किसी दुर्घटना की आशंका
  140. मंदिर देखना – धार्मिक कार्य में सहयोग करना
  141. तपस्वी दिखाई – देना दान करना
  142. तर्पण करते हुए देखना – परिवार में किसी बुर्जुग की मृत्यु
  143. डाकिया देखना – दूर के रिश्तेदार से मिलना
  144. तमाचा मारना – शत्रु पर विजय
  145. उत्सव मनाते हुए देखना – शोक होना
  146. दवात दिखाई देना – धन आगमन
  147. नक्शा देखना – किसी योजना में सफलता
  148. नमक देखना – स्वास्थ्य में लाभ
  149. कोर्ट-कचहरी देखना – विवाद में पडऩा
  150. पगडंडी देखना – समस्याओं का निराकरण
  151. सीना या आंख खुजाना – धन लाभा


शंकु निधान [स्थापना]

आम, पलाश, लालचंदन, नीम, रक्तशाल, बिल्व या अर्जुन की लकड़ी का शंकु बनाया जाता हे। सभी वर्णो के लिए 12 अंगुल लंबा शंकु बनाना चाहिए। शंकु को बराबर तीन भागो मॅ विभाजित करे। सबसे नीचे वाला भाग चतुरसार[चोकोन], मध्य भाग को अस्ट्सार [अष्टकोन] और उपर वाले भाग को लिंगाकार गोल होना चाहिए।
शंकु स्थापना शुभ मुहूर्त के समय स्वर्ण, वस्त्र, शुद्ध मृतिका, गंध, धूप, दीप देकर माले से अलंकृत कर वास्तुपुरुष की नाभि मे गाड़ देना चाहिए।
वास्तुपुरुष की नाभि का निर्णय इस प्रकार किया जाता हे:-
सिंह, कन्या, तुलास्त सूर्य के समय वास्तुपुरुष का शीर्ष पूर्व मे;
वृस्चिक धनु, मकरस्त के समय दक्षिण मे ;
कुंभ, मीन, मेष्स्थ सूर्य के समय पश्चिम मे और
वृषभ, मिथुन, कर्कस्थ सूर्य के समय उत्तर मे होता है ।
वास्तुपुरुष भूमी के इस छोर से उस छोर तक बाई करवट लेटा रहता हे. गृह द्वार जिस दिशा मॅ बनाना हे, उसी दिशा मॅ वास्तुपुरुष का जब शीर्ष हो [जिस सौर मास मे हो] तब भूमी के मध्य से गुजरती उसी दिशा [वास्तुशीर्ष दिशा] की और जाती सरल रेखा बनाए. यह रेखा ग्रहभूमी के दोनो छोर को छुएगी| इस रेखा का एक छोर वास्तुपुरुष का शीर्ष और दूसरा छोर पैर​ होगा | इस रेखा के समान 28 भाग करे| वास्तुपुरुष के पैर​ वाले बिंदु से 17 भाग छोड़कर 18वा [सिर से 11वा] भाग वास्तुपुरुष की नाभि हे| इस नाभि से दाँयी और [वास्तुपुरुष से बाई और] एक हाथ गहरा गर्त खोदिए, जिसकी लंबाई, चोडाई वास्तुपुरुष के शरीर के 28वे भाग के बराबर हो. इस गर्त मे पूर्वोक्त [उपरोक्त] शंकु गाड़ना चाहिए ।

उदाहराण: पूर्व मुखी भूमि के लिए, जब सूर्य सिंह, कन्या, तुल्स्थ हो उस समय इस भूमी के मध्य से गुजरती सरल रेखा \”क\” \”ख\” खिचे | यह रेखा पूर्व और पेश्चिम वाली भुजा के मध्य बिंदु को छू रही हे.यह \”क\” \”ख\” रेखा वास्तुपुरुष का शरीर हे | \”.क\” बिंदु वास्तुपुरुष का सर और \”ख\” बिंदु पेर हे| वास्तुपुरुष के इस शरीर को 28 भागो मे विभक्त किया गया हे | \”ख\” से उपर 18वा भाग वास्तुपुरुष की नाभि हे जिसे ← चिन्हित किया गया हे |

विशेष :- ध्यान रखनेवाली बात यह हे की वास्तुपुरुष बाई करवट लेता हे 18वा [सिर से 11वा] भाग उसकी नाभि \”क ख\” रेखा से दाई और वाली भाग मे होगी. यह भी ध्यान रहे कि गर्त नाभि की स्पर्श करे, लॅकिन उसके उपर न हो| इसी नाभीगतृ उपरोक्त शंकु गाड़ना चाहिए ।
एसा ग्रहस्वयामी सभी प्रकार की सुख समृध्दी प्राप्त करता हे ।

घर में दर्पण (मिरर) कहाँ नही लगाना चाहिए ?

वास्तु मे जिस वस्तु को जहा होना चाहे उसे वही रखना चाहिए। काँच का नियत स्थान ड्रेसिंग कमरा हे अर्थात इसे बेडरूम मे नही होना चाहिए। अक्सर जो ग़लत जगह देखने मे आती हे जहा काँच नही लगे होने चाहिए वो इस प्रकार हे :
डबल बेड के पीछे।
दरवाजो,खिड़कियो,मेहराबो और मकान के बाहर ।
दरवाजा खोलते ही सामने ।
अलमारी पर या अलमारी के पॅलो पर ।
काँच के सामने टीवी ।
एक काँच के सामने दूसरा काँच ।
एसी जगह जहा पर से दरवाजा खुलता और बंद होता नज़र आता हो ।
किचन और स्टडी रूम मे कतई नही हो ।
छत पर ।
टेबल पर ।
पूजा घर मे देव हेतु होना तो चाहिए पर प्रयोग के बाद उलटा रखे ।
बैठक के पीछे, दाए, बाए या ठीक सामने ।
गाड़ी, जलता बल्ब और चलता पंखा काँच मे नज़र नही आए ।
आते जाते लोगबाग या वाहन काँच मे नज़र नही आए ।
तिजोरी या कॅश बॉक्स ।
साउंड सिस्टम की निकलती ध्वनि काँच से टकराएँ नही ।
टॉयलेट मे चलता हुआ नल, कमोड, वॉश बेसिन नज़र नही आए ।
फर्श का मार्बल काँच की तरह चमकता नही होना चाहिए ।
संपूर्ण कमरा काँच का हो सकता है पर वो केवल मनोरंजन हेतु ही प्रयोग मे लिया जाए ।

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